
भले ही केंद्र सरकार या राज्य सरकार लाख दावा करे एक से एक योजना कि मगर हकीकत यही है कि गरबी घटने के बदले और बढ रही है | मधुबनी समेत पंडौल सकरी एवं सरसों के बाजारों में चल रहे होटलों में 100 से जयादा अब भी अपने परिवार कि रोजी रोटी चला रहे है | पेट कि आग में बच्चपन खो कर करकडाते ठण्ड में माशुम बच्चे आज फिर अपने खाने के जुगार में कचरा चुनने निकल पड़ा है | किसी स्कूल या माँ बाप कि छाया या गर्म रजाई के निचे होने के बदले कूड़े कि ढेर पर आने काम कि चीज इकठा करते ये माशुम अपने अरमान किसे सुनाये ? | होटलों में काम करने वाले बच्चे से रूपये दे कर अपने लिए शाराब मागा लेने वाले लोगों को शर्म तो दूर दया भी नहीं आती इन माशुमों पर,आखिर इन का कसूरवार कोंन है ?
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