कोचिंग संस्थानों में छात्रों का शोषण
लॉज संचालक भी नाजायज वसूली करने में पीछे नहीं
मधुबनी : जिले भर में कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग संस्थान खुल रहे है. सिर्फ़ स्थानीय शहर में लगभग 200 कोचिंग संस्थान चलाये जा रहे है. सभी संस्थान पूर्ण रूप से बिना रजिस्ट्रेशन के है.
मधुबनी : जिले भर में कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग संस्थान खुल रहे है. सिर्फ़ स्थानीय शहर में लगभग 200 कोचिंग संस्थान चलाये जा रहे है. सभी संस्थान पूर्ण रूप से बिना रजिस्ट्रेशन के है.
संचालकों को कोचिंग एक्ट के बारे में जानकारी तक नहीं है. सभी कोचिंग स्थान सुविधा विहीन है. एक कमरा लिया और हो गयी शुरुआत. इक्के दुक्के कोचिंग संस्थान को छोड़कर न तो किसी संस्थान में शौचालय है और न पीने की पानी की व्यवस्था.
जबकि कोचिंग एक्ट के अनुसार सभी कोचिंग संस्थाओं में शौचालय, अग्निशमन, आकस्मिक चिकित्सा व्यवस्था अनिवार्य रूप से होनी चाहिए. साथ ही सभी कोचिंग संस्थानों के पास पार्किंग की भी व्यवस्था होनी चाहिये. खासकर सबसे अहम सुविधा में शौचालय की सुविधा है. इसके न होने से छात्राओं को अधिक परेशानी झेलनी पड़ती है.
हो रहा शोषण
स्थानीय शहर के विभिन्न लॉजो व छात्रावासों में रहकर कोचिंग संस्थानों का सहारा लेकर पढ़ाई करने वाले छात्रों का शोषण हो रहा है. ये एक निरीह प्राणी की तरह शोषित होते रहते है. अन्य कोई विकल्प न हो पाने के कारण शोषित होना इनकी नियति बन गई है. एक तरफ़ कोचिंग संचालकों द्वारा मनमानी फ़ीस.
स्थानीय शहर के विभिन्न लॉजो व छात्रावासों में रहकर कोचिंग संस्थानों का सहारा लेकर पढ़ाई करने वाले छात्रों का शोषण हो रहा है. ये एक निरीह प्राणी की तरह शोषित होते रहते है. अन्य कोई विकल्प न हो पाने के कारण शोषित होना इनकी नियति बन गई है. एक तरफ़ कोचिंग संचालकों द्वारा मनमानी फ़ीस.
वहीं दूसरी तरफ़ लॉज संचालकों द्वारा मनमाना भाड़ा दोनों ही परिस्थिति इनके लिये भाड़ा दोनों ही परिस्थिति इनके लिये भाड़ा दोनों ही परिस्थिति इनके लिये रूला देनेवाला होता है. सबसे अहम यह है कि बिना इन दोनों चीजों के सहारा लिये पढ़ाई करना पाना मुश्किल है. कारण न तो इनके लिये कॉलेजों में पढ़ाई के लिये उपयुक्त पठन पाठन की व्यवस्था है. और न ही सर छुपाने के लिये छात्रावास की व्यवस्था है. और इन दोनों परिस्थितियों को पूरा करने के लिये उन्हें शोषित होना होगा.
कौन सुनेगा दर्द
अपने परिजनों से कोसों दूर रहकर यहां आकर पढ़ाई करने वाले इन छात्रों का दर्द सुननेवाला कोई करने वाले वैसे छात्रों की संख्या अधिक होती है. जो मध्यमर्गीय व कृषक परिवारों से संबंध रखते है. कारण ऐसे छात्रों के पास काफ़ी ओर्थक अभाव होता है.
अपने परिजनों से कोसों दूर रहकर यहां आकर पढ़ाई करने वाले इन छात्रों का दर्द सुननेवाला कोई करने वाले वैसे छात्रों की संख्या अधिक होती है. जो मध्यमर्गीय व कृषक परिवारों से संबंध रखते है. कारण ऐसे छात्रों के पास काफ़ी ओर्थक अभाव होता है.
और इनकी मजबूरी के समझने की बजाय थोड़ी सी विलंब होने पर यहां के कोचिंग संचालकों द्वारा व लॉज मालिकों द्वारा आसानी से कल से न आने और कमरा खाली करने का फ़रमान जारी कर दिया जाता है. फ़िर वे एक बेचारे की उपाधि लिये हुए समस्या के समाधान की ओर जी जान से जुट जाते है.
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