पंडौल(मधुबनी)
जब कयामत के मैदान में हर आदमी को सिर्फ अपनी ही पड़ी होगी। ना बेटा बाप का होगा ना बाप बेटे का होगा। सब दुनिया में किए गए काम का हिसाब देने में लगे होंगे। हर तरफ अजीब बेबसी का आलम होगा। ऐसे में फरिश्ते रोजेदारों की गवाही देंगे या अल्लाह इस बंदे ने तेरे लिए रोजा रखा। रोजे के दौरान कुछ खाया और न कुछ पिया। झूठ फरेब से परहेज किया और नमाज पढ़ने के साथ कुरआन की तिलावत भी की। तभी तो फरिश्तों की ऐसी ही सिफारिश के बारे में मंजर जब नजर आया मलायक ने कहा हक से ये दीवाना है सायम का। करमगंज मस्जिद के नमाजी मो. नदीम ने कहा कि रमजान अजमत और बरकत का महीना है। इस माह की जिसने कद्र की उसने खुद अपना भला किया। रमजान की अजमत का ही असर है कि इस माह अल्लाह पाक मोमिन की रोजी में बरकत डाल देता है। पूरे माह सुख चैन रहता है। लोग इबादत के अलावा गरीबों-मजबूरों की मदद में लगे रहते हैं। मो.तबरेज ने कहा कि रमजान हमारे लिए अल्लाह का खास तोहफा है। यह वह पाक महीना है जिसमें लोग एक दायरे में बंध जाते हैं। हर तरफ इबादत और तिलावत का दौर शुरू हो जाता है। अमीर-गरीब सब भूखे-प्यासे रहकर साथ-साथ इबादत करते हैं। यही रमजान की असल नूरानियत है। जिसकी चमक में दुनिया चकाचौंध है। बूढ़े अशरफूज्म्मा और मो.नुरुल इस्लाम ने तो रमजान महीना ही पाकर निहाल हैं। कहते हैं कि सामान्य दिनों में रोजा बहुत मुश्किल ही नहीं असंभव है। मगर यह रमजान की ही अहमत है कि पूरे एक माह लोग रोजा रख लेते हैं। मो. साजिद और मो. इकबाल को माह-ए-तरावीह और सेहरी में बड़ा मजा आता है। रमजान में भरी-भरी मस्जिदें लोगों के चेहरे पर एक नूर बिखेर देती है। मो. आजाद ओर मो. इकबाल को रमजान का एक साल से इंतजार था। रमजान की तैयारियां चल रही थीं। जब चांद दिखा और तरावीह पढ़ने की नौबत आई तो रमजान का असल मतलब समझ में आया। आज हालत यह है कि पांचों वक्त की फर्ज नमाज के साथ साथ नाफिल पढ़ने और कुरआन की तिलावत भी दोनों कर रहे हैं। इफ्तार में एक साथ बैठकर दुआ पढ़ने का असर और फिर घर में तिलावत की गूंज को मदहोश किए हैं।
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