पंडौल।अयाज़ महमूद रूमी
सुता मिल के मजदूरों को नज़रअंदाज़ कर नए कारखाने लगाने के लिए भूमि पूजन कर दिया गया। जिसका शिलान्यास करने क्षेत्रीय विधायक सह उद्योग मंत्री समीर कुमार महासेठ पंडौल आए। मगर सुता मिल मे काम करने वाले 605 मजदूरों के बकाए भूकतान व उसके परिवारों को रोजगार को लेकर कोई चर्चा नहीं किया गया।
जानकारी के मुताबिक पंडौल सूत मिल की स्थापना वर्ष 1986 में पंडौल औद्योगिक क्षेत्र में की गई थी। जिसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी के द्वारा किया गया था। किसी समय इस सूत मिल में 605 कर्मी काम करते थे। लेकिन वर्ष 2000 आते-आते मिल में महज 367 कर्मी रह गए थे। मार्च 2000 आते-आते मिल बंद हो गई। बंद पड़ी मिल को चालू करने के नाम पर कई चुनाव लड़ी गयी। कई नेता बने तो कई लोग जीत कर सांसद व विधायक के बाद मंत्री भी बने मगर राजनीतिक चमक के पीछे बंद पड़ी फ़ैक्टरिया कभी फिर चालू नहीं हो पाई। कई सरकारे बनी गिरि और क्षेत्र के लोग मिल पुन: शुरू हो इसके लिए लोग प्रतीक्षा करते ही रह गए। और मिल के भूमि पर आलीशान इंजीयरीनिग कालेज बन गयी। इस बीच अचानक ही नवंबर मे मिल को नीलाम करने की घोषणा कर दी गयी। और कुछ ही दिनों के बाद सुता मिल के भूमि के 15.8 एकड़ जमीन पर उद्योग मंत्री ने सावी लेदर्स के नए कारखाने की भूमि पूजन भी की है।
इस संबंध मे सुता मिल के मजदूर प्रमोद ठाकुर बताते है मिल में करीब बीस करोड़ की लागत से नवीनतम तकनीक की मशीनें एवं आधारभूत संरचना यहां तैयार की गई थी। उत्पादन भी शुरू हुआ। अच्छी उपलब्धि एवं सही उत्पादन की चर्चा सर्वत्र होने लगी परन्तु विभागीय उदासीनता के कारण उत्पादन ठप होने से मिल बंद हो गया। प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता आठ क्विंटल प्रतिदिन थी। 25 हजार की स्पैंडल क्षमता रहने के बावजूद महज 14 हजार स्पैंडल क्षमता का ही उपयोग किया गया। कैलाश प्रसाद मिश्रा कहते है मिल के कुछ कर्मियों की नौकरी का समायोजन दूसरी जगह कर ली गई। लेकिन दैनिक एवं स्थायी कर्मियों के समक्ष बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो गई। ऐसे कर्मी रोजगार के तलाश में अन्यत्र पलायन कर गए। मिल के 300 मजदूरों व 30 कार्यालय कर्मियों के वर्ष 1991 के मार्च से वर्ष 1992 के नवंबर तक तथा नवंबर 1998 से मार्च 2000 तक के बकाए वेतन करीब एक करोड़ राशि का भुगतान वर्ष 2000 से लंबित है। वेतन भुगतान को लेकर मिल के कर्मियों द्वारा जिला उद्योग केन्द्र पर नाराजगी व्यक्त किया जाता रहा है। भुगतान को लेकर कर्मियों ने वर्ष 2015 में हाई कोर्ट के दरवाजे पर पहुंचे जहां अभी भी मामला अधर में लटका हुआ है। जानकारी के मुताबिक राज्यपाल के द्वारा मार्च 2018 में बकाया भुगतान का आदेश दिया जा चुका है परंतु पीएफ विभाग व उसके कर्मी किसी भी रिकार्ड के नहीं रहने का बहाना बना गरीबों को ठग रहे हैं। नतीजा जिस मिल के सूत विदेशों तक जाते थे आज वह स्वयं अपनी दुर्दशा पर रो रही। शनिवार को भूमि पूजन के मौके पर मजदूर अपनी मांग को लेकर लगातार मंत्री से संपर्क करने के प्रयास मे थे मगर वे कामयाब नहीं हो सके। मो हैदर ने कहा कि बकाए भुगतान को लेकर मंत्री से मिलने गए थे। उन्होने अश्वशन दिया था कि जल्द भूकतान कराया जाएगा। मगर उक्त वादे को भी दो माह हो गए मगर किसी को एक पैसा नहीं मिला और अब उक्त स्थान पर नए कारखाने लगाए जा रहे है।
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