इनदिनों बाजार में आम बिक रहे हैं। ज्यादातर आम सूबे के बाहर के हैं। फिलहाल इलाकाई आमों की आमद कम है। चालानी आम आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों से आ रहे हैं। इन राज्यों से यहां के आम के कारोबारी कच्चा आम मंगवाते हैं क्योंकि पका आम रास्ते में ही खराब हो जाता है। इन कच्चे आमों को कारोबारी कार्बाइड के जरिये पकाते हैं। कार्बाइड से पके आम सेहत के लिए नुकसानदेह होते हैं। ऐसे आमों के जरिये लोगों की रगों में धीमा जहर घुल रहा है। यह तरीका इंसानी जिंदगी और सेहत के लिए मुफीद नहीं है। हालांकि खाद्य अपमिशण्रकानून 1954 के तहत फल पकाने को नाजायज और गैरकानूनी करार दिया गया है। फिर भी फलों के कारोबारी बेखौफ इस काम को अंजाम दे रहे हैं। पेड़ की डालों पर कुदरती तौर से पके फल सबसे सेहतमंद होते हैं। मजबूरी की सूरतेहाल में पेपररैप और भूंसा पुआल में रख कर पकाने का तरीका बेहतर है। पेपर रैप के तरीके से फलों को कागज में लपेट कर पकाया जाता है। लेकिन इनदिनों ज्यादातर फलों के व्यापारी कैल्शियम कार्बाइड से आमों को पका कर बेच रहे हैं। कार्बाइड से फल पक कर जल्दी तैयार हो जाते हैं। देखने में ये ताजे-ताजे, पीले-पीले लगते हैं। मगर कार्बाइड से निकलने वाली एसीटिलीन गैस जहरीली होने की वजह से सेहत पर बुरा प्रभाव डालती है। एसीटिलीन गैस जब पानी में घुलती या इसके संपर्क में आती है तो रासायनिक क्रिया के कारण विनायल अल्कोहल और एसीटल्डिहाइड रसायन बनते हेैं। ये दोनों ही जिस्म के लिए नुकसानदेह हैं। यह वही कैल्शियम कार्बाइड है जिसका इस्तेमाल वेल्डिंग करनेवाले ऑक्सीजन के साथ लोहे को पिघलाने में करते हैं। इसके ताप का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। डॉ. प्रेम शंकर शर्मा बताते हैं कि कार्बाइड से पकाने पर फलों के खनिज नष्ट हो जाते हैं। ऐसे फल शरीर में गर्मी उत्पन्न करते हैं। नाड़ी की गति को तेज करते हैं। स्वास्थ्य पर इनका बुरा प्रभाव पड़ता है। कार्बाइड से पके फलों को लगातार खाने से कैंसर, लकवा, जिगर की बीमारियां, विकलांगता आदि रोग हो सकते हैं।
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