अयाज़ महमूद रूमी- मधुबनी
मिथिला पेंटिंग आज देश दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं। मिथिला के घर घर में प्रचलित मधुबनी पेंटिंग आज घर से निकलकर देश दुनिया में लोगो को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। मधुबनी पेंटिंग की शिल्प गुरु गोदावरी दत्त को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। 90 वर्षीय गोदावरी दत्त ने मिथिला पेंटिग को घर से निकालकर देश दुनिया में पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। 90 वर्ष की होने के बावजूद आज भी वह अपनी पेंटिंग के हुनर से ऐसी पेंटिंग उकेरती है की देखने वाले इनके कलाकृति से मंत्रमुग्ध हो जाते है। गोदावरी दत्त पिछले 40-50 वर्षों से मधुबनी में मिथिला पेंटिंग पर काम कर रही है। बड़ी संख्या में लोग मधुबनी पेंटिंग इनसे सीखने आते है। देश दुनिया में मिथिला पेंटिंग को पहुंचाने में इनका बहुत बड़ा योगदान है।
गोदावरी दत्त का जन्म 1930 में दरभंगा के बहादुरपुर में हुआ ।
1930 में दरभंगा स्थित बहादुरपुर गांव में जन्मी गोदावरी दत्त को मिथिला पेंटिंग की विरासत उनकी मां से मिलीं। बचपन में ही उनकी मां ने मधुबनी पेंटिंग का प्रशिक्षण दिया जिसे इन्होंने इस कला पर अपना जीवन समर्पित कर दिया। मधुबनी पेंटिंग में कचनी शैली की पेंटिंग जो पौराणिक और धार्मिक विषयों पर चित्रण किया जाता है जिसमें राम जानकी का विवाह ,उगते हुए सूर्य को अर्घ्य मिथिला की पहचान बन चुकी है। गोदावरी दत्त को राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ शिल्पगुरु पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।
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