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मनरेगा योजना


जिस मनरेगा योजना से हिन्दुस्तान की तस्वीर बदलने का दावा किया गया, उसकी जमीनी हकीकत आप देखेंगे तो चौंक जाएंगे. पौने दो लाख करोड़ की जिस योजना ने कांग्रेस को दोबारा दिल्ली की सत्ता दिला दी, उस योजना में भ्रष्टाचार का दीमक लग गया.
2009 में सत्ता में लौटने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने जीत की उपलब्‍धि का सेहरा नरेगा के सिर बांधा. जिसके बाद तय हुआ कि नरेगा के साथ महात्मा गांधी का नाम जोड़ दिया जाए क्योकि नरेगा ने गांव की तस्वीर बदली है और गांधी जी गांव की तस्वीर ही बदलना चाहते थे.
कांग्रेस के भविष्य राहुल गांधी ने तो राजस्थान में नरेगा के तहत कांम करने वाले ग्रामीणों के साथ मिट्टी उठाकर देश को इसका अहसास करा दिया कि सियासत के पांव जमीन से जुड़े रहने चाहिये.
देश के सभी 624 जिलों में चल रही है मनरेगा योजना
200 जिले और 15 हजार करोड़ से शुरू हुआ नरेगा आज की तारीख में देश के सभी 624 जिलों और सालाना 33 हजार करोड़ खर्च करने तक जा पहुंचा है. इस योजना के तहत अब तक सबसे ज्यादा 41 हजार करोड़ का बजट आवंटित किया गया.
तो सियासत के लिहाज से चाहे नरेगा से मनरेगा ने देश की तासिर बदल दी लेकिन इसका असल सच एक ऐसी लूट का है जो महालूट में बदल चुकी है.
अब तक आपने भ्रष्टाचार या घोटाले के जितने भी खुलासे देखे होंगे, उनमें ज्यादातर मामलों में घोटाले की रकम का अनुमान लगाया गया है. ऑपरेशन महालूट में आजतक जिस घोटाले का खुलासा करने जा रहा है, उसमें पैसा पहले निकला, घपला बाद में हुआ.
करोड़ों खर्च हुए लेकिन तालाब और कुंए अब भी सूखे हैं
सवा-सवा करोड़ के तालाब है पर एक बूंद पानी नही. सवा-सवा लाख के कुंए हैं पर दो फुट भी गहरे नहीं. बीस-बीस लाख की सड़कें हैं पर कागजों पर हैं वजूद. मरे लोगों के नाम पर जॉब कार्ड पर जिन्दा है बेरोजगार.
ये महालूट की मुकम्मल गाथा की कुछ किस्‍से हैं. ये हाल पौने दो लाख करोड़ रुपये वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना यानी मनरेगा की है. महात्मा गांधी के नाम पर चल रही ये दुनिया की सबसे बड़ी रोज़गार योजना है, जो बन गया है लूट और घोटाले का अड्डा.
नीतीश राज में भी लूट का अड्डा बना मनरेगा
बिहार के माथे से बदहाली का टैग हटाने वाले नीतीश कुमार के शासन में मनरेगा के अरबों रुपये से क्या क्या बदल गया.
नीतीश के सुशासन का हाल इनसे बेहतर भला और कौन बताएगा. बिहार पुलिस में सुनील चौधरी असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर है. सुनील की मानें तो उनकी तैनाती पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सुरक्षा में भी रही.
सुनील खुद बताते हैं कि मैं सीएम आवास में था. लेकिन ये क्या खगड़िया के रहीमपुर पचकुट्टी गांव के पंचायत रजिस्टर में सुनील चौधरी मनरेगा योजना के तहत मजदूरी कर रहे हैं. सरकारी खातों पर अगर यकीन करें तो सुनील एक हाथ से बिहार सरकार से तनख्वाह लेते रहे, तो दूसरे हाथ से केंद्र की मनरेगा योजना के तहत पैसा बटोरते रहे.
आज तक को 2010 के दस्तावेज हाथ लगे, जिसमें सुनील चौधरी और उनके दो भाईयों की मजदूरी का कच्चा चिट्ठा है. तीनों भाईयों के नाम पंचायत की तरफ से मजदूरी के एवज में पैसा भी दिया गया. आगे का सच खुद नीतीश के दरोगा खुद बताते हैं.
मनरेगा की आड़ में चल रहे महालूट का ये कोई इकलौता किस्सा नहीं. पंचायत स्तर से जो भ्रष्टाचार की सीढ़ी शुरू होती है, उसका पहला पायदान है जॉब कार्ड में भारी घपला. मनरेगा के तहत काम चाहिए तो जॉब कार्ड की जरुरत होगी.
बिना मजदूर के मजदूरी मिलती है बिहार में
सिर्फ बिहार की बात की जाए तो सात सालों में अब तक एक करोड़ 26 लाख लोगों को जॉब कार्ड जारी किया गया. पिछले दस महीनों में इन जॉब कार्ड के आधार पर 1109 करोड़ रुपये की मजदूरी का भुगतान किया गया.
जॉब कार्ड जिसके आधार पर काम का सत्यापन करके मजदूरी का भुगतान किया जाता है. लेकिन बिहार में मनरेगा को लेकर उल्टी गंगा बह रही है. काम मिले या ना मिले, जॉब कार्ड हाजिर हो जाएगा. करोड़ों की रकम डकारने के लिए मिल जाएगा जॉब कार्ड बनाने का चलता फिरता कारखाना. आदमी हो या न हो, वोटर लिस्ट में नाम और पते दर्ज हों. वोटर लिस्ट से फोटो मिल जाए, बस जॉब कार्ड मिल जाएगा.
दिल्‍ली में काम करने वाले को बिहार में मिली मजदूरी
नाम द्वारिका तिवारी. सुनील चौधरी की ही तरह तिवारीजी का भी फर्जी जॉब कार्ड बनाकर अफसरों और प्रधानों ने वारे न्यारे कर दिए.
तिवारीजी औरंगाबाद के खाते पीते लोगों में से एक है. बेटा बहू दिल्ली में बढि़या नौकरी कर रहे हैं. लेकिन मनरेगा की माया तो देखिए. पंचायत के रजिस्टर पर पूरा खानदान ही मजदूरी करता रहा और मजदूरी की रकम मुखिया और अफसर डकारते रहे.
औरंगाबाद के अमरेन्द्र प्रसाद की शिकायत भी कुछ अलग नहीं. हरियाणा की एक फैक्ट्री में काम करने वाले अमरेन्द्र के नाम पर मनरेगा में खाता तो खुला गया, लेकिन इन साहब को इसकी जानकारी ही नहीं.
जॉब कार्ड में घपलों की शिकायतें जगह-जगह हैं. कहीं फर्जी जॉब कार्ड बना कर मजदूरी की रकम की बंटरबांट हो रही है, तो औरंगाबाद जिले के मदनपुरा थाना क्षेत्र में ऐसे तमाम लोग मिले जिनके जॉब कार्ड में हेरा फेरी की गयी.
पुलिस करने लगी प्रधानों की वकालत
जॉब कार्ड के आधार पर खुले बैंक खाते और पासबुक में गड़बड़ी की शिकायत लेकर जब मजदूर थानेदार से मिलने पहुंचे तो थानेदार साहब रपट लिखने की जगह आजतक के कैमरे के सामने ही अफसरों और प्रधानों की ही पैरवी करने लगे.
थानेदार साहब जब भ्रष्टाचारियों की ही पैरवी करने लगे तो आजतक की टीम मजदूरों के साथ औरंगाबाद के उप विकास आयुक्त राम विकास पाण्डेय से मिलने पहुंची. कैमरे पर उपविकास आयुक्त महोदय ने गड़बड़ी मान ली.
जॉब कार्ड के गड़बड़झाले को लेकर खगडि़या के प्रोग्राम अधिकारी राज कुमार चौधरी ने भी पैसों के भुगतान में गड़बड़ी की बात कबूली. सबूत सामने रख कर आजतक ने जब सवाल उठाए तो अफसरों ने गड़बड़ियों की बात मान ली, लेकिन इस पर कैसे लगाम लगे इसे लेकर किसी के भी पास कोई जबाव नहीं.
मनरेगा के मजदूर के आंकड़े तो देख लिए अब मजदूरी के किस्‍से भी जानिए. पटना से 125 किलोमीटर दूर बेगुसराय का भगतपुर गांव. सड़क के साथ कच्ची नाली. ये वही जगह है जहां पर 2000 से ज्यादा सागवान, नीम, आम और कदम के पेड़ लगाए जाने थे. 2009-2010 में मनरेगा के तहत पंचायत को करीब 15 लाख रुपये दिए गए थे. उपजाऊ मिट्टी होने के बाद भी पेड़ कहां गायब हो गए. कायदे से अब तक पेड़ को 10 फुट तक बड़ा हो जाना चाहिए था, लेकिन आजतक की टीम को यहां पेड़ तो क्या घास तक देखने को नहीं मिली.
सरकारी कागजों पर जिस प्रोजेक्ट को पूरा दिखाया गया, लेकिन हकीकत की जमीन पर जिनका वजूद ही नहीं था. ऐसे मामलों को लेकर आजतक की टीम ने बेगुसराय की पुलिस और प्रशासन से संपर्क किया तो उन्होंने शिकायतों की जांच कराने भर का सिर्फ आश्वासन ही दिया.
जांच कब तक पूरी होगी. कार्रवाई जब भी हो, लेकिन सच यही है की पेड़ लगाने से लेकर सड़कें बनाने के नाम पर, कुंए से लेकर तालाब खोदने के नाम पर दिल्ली से पैसा दिल खोल के आ रहा है, तो यहां दिल खोल के लूटा जा रहा है.
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Milan Tomic

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