बाबूबरही (मधुबनी) दहेज हत्या के मामले में आरोपी चाची के संग मृतका की दो मासूम पुत्रियां भी सलाखों के भीतर है। मां की मौत से पूर्व व बाद में चाची सुचित्रा का इन्हें इतना प्यार मिला था कि पुलिस द्वारा सुचित्रा को गिरफ्तार किए जाने के बाद दोनों मासूम करुण-क्रंदन करते चाची का आंचल थामे जेल तक पहुंच गई।
विस्तृत दास्तान यह है कि कलुआही थाना क्षेत्र के नरार गांव निवासी सदानंद झा की पुत्री पिंकी की शादी 5 दिसंबर 2002 को बाबूबरही थाना क्षेत्र के भटचौड़ा गांव निवासी विमल झा से हुई। इनकी दो संतानें क्रमश: कंचन (8) व भारती (4) है। 18 अक्टूबर 11 को पिंकी की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई। इस बाबत उनके पिता द्वारा स्थानीय थाना में 30 अक्टूबर 11 को कांड सं. 158/11 दर्ज कराते दहेज के कारण हत्या का आरोप लगाते मृतका के पति विमल, ससुर उमाकांत झा, सास भद्रकला देवी, जेठ देवनाथ झा, जेठानी सुचित्रा देवी एवं जाउत अजय कुमार झा को नामजद किया गया। पति विमल ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया। इधर, अन्य नामजद गांव में ही डेरा डाले रहे। दहेज हत्या की मामले को सिरे से खारिज करते इसे बीमारी से हुई मौत बताते रहे। किन्तु पुलिस को मिली गवाही के आधार पर दहेज हत्या को सही करार दिया गया। वहीं कई ग्रामीणों ने बताया कि सुचित्रा का नाम केस में डाले जाने के बाद ये मानसिक अवसाद के दौर से गुजरते भी आपा नहीं खोई। इस अनाथ दोनों बच्ची को आंखों का तारा बनाकर रखा। इसी कारण बीते मंगलवार को अभियुक्तों को गिरफ्तार करने पहुंची पुलिस के समक्ष बड़ी मां सुचित्रा के आंचल को थामे दोनों बच्ची के करुण-क्रांदन से जुटी भीड़ की आंखें डबडबा गई। कंचन कहते जा रही थी 'सर, हम्मर मां अपने बेहोश भयक खसि पड़लै। पापा, बड़ी मम्मी, दादा-दादी सभ ओकरा उठा क डाक्टर सं देखेलकै। ओ अपने मरि गेलै। ओकरा कोई नै मारलकै। ककरो सं झगड़ा नै होई छलै आदि-आदि।' चाची के रंग में रची-बसी दोनों मासूम बदहवासी की दशा में इनका आंचल नहीं छोड़ा। वहीं 65 वर्षीया वृद्धा सास, लाठी टेकते 70 वर्षीय वृद्ध ससुर परिजनों के आर्सनाद के बीच पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिये गये। टोले के गणेश झा समेत कई लोग भी दबी जुबान से कंचन की बातों को शतप्रतिशत सत्य बताते हैं। किन्तु कानूनी पचड़े में ये नहीं पड़ना चाहते। ग्रामीणों का मानना है कि ंिपंकी की मौत बीमारी से हुई। गरीबी के बावजूद भी उमाकांत बाबू परिवार के सदस्य आदर्श पर जीते रहे हैं। कोई आपराधिक इतिहास नहीं रहा। बताया गया कि मौत की सूचना तत्काल ही पिंकी के पिता को देकर शव को संस्कार से घंटों रोका गया। किन्तु ये नहीं पहुंचे। श्राद्ध कर्म में कई दिनों तक ये शिरकत किए। बाद में दामाद के परिजनों पर सभी के हिस्से की घरारी की जमीन अपनी नतनी के नाम कराने को दबाव बनाया जाने लगा। इस पर खरा नहीं उतरने के कारण मौत के 12 दिन बाद एफआईआर दर्ज किया गया। ग्रामीण खुद सवाल कर जाते हैं कि अगर सदानंद बाबू को अपनी नतनी के प्रति मोह था तो क्यों पुत्री की मौत के छह माह बीत जाने के बाद भी एक बार भी इनकी खोज-खबर नहीं ली। ग्रामीणों को अब भी न्यायालय पर भरोसा है। फिलवक्त ग्रामीणों को यह दर्द सालता है कि मिंट्टी के संग खेलने-धूपने व ककहरा सीखने की उम्र में कंचन व भारती बगैर खता के ही काल-कोठरी में बंद है। अधिवक्ता संजय कुमार कहते हैं कि ऐन वक्त पर लीगल गार्जियन की अनुपस्थिति के कारण ऐसा निर्णय लिया जाता है। अब भी महज एक आवेदन के माध्यम बच्चे को लीगल अभिभावक ले सकते हैं।
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हत्याकांड में आरोपी चाची संग जेल पहुंच गये मासूम बच्चे
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